Maithili Comedy:घनहन सतयुग आब: Janak jee




घनहन सतयुग आब

बीत गेले कलयुग कहिया ने, घंहन सतयुग आब !
मिसियो भरि ककरो पर छजतनि, ककरो आई रुआब !!

कहियो देखने छला लाख टका कमरथुआ बैधनाथ ?
भारक भार गंगाजल पी-पी गौरिक संग सनाथ !!

कोनो मंठ पर कहियो कतौ रामायानक नवाह ?
मंदिर-मंदिर स्पीकर पर आठो काण्ड प्रबाह !!

ब्याह्दान में राज-रजबाड़ा में जे डेकोरेशन !
तते एखुनका कियो करैए के देलकैक सजेसन ?

बिन मंगने फटफटिया गाड़ी बुडिबकहोक बिदाई !
एक्को बेर बिना कारक नै औति बुच्ची दाइ !!

कोदो,मरुआ, अल्हुआ, सुथनी, ककरो छैक अहार?
बिषठी,गाँती,कौपीनक, क्यों रखने अछि बेवहार?

राति बिराती, सेन्ध दए घरमे, कतौ होइए चोरि?
दिन दृष्टी जे होइछै से तं ढाहि तिजोरी तोड़ी !!

ढेंगरियैल घर-घर में साझर, आब न औंठा छाप !
हनुमत जकाँ आइ अमरीका, हमरा दुइये धाप !!

तनले रहनि तीर अर्जुनक, से परमाणुक बम्म !
धरती सँ उड़ी कें मानव मंगल पर मारए दम्म !!

घर-घर में बिजलीक पंखा, खेत-खेत में पानि !
दुआरी-दुआरी पर चान तरेगन, टीम-टीम कर दिन रैन !!

स्नातक बनि गुरुआश्रम सँ अबै छला दु एक !
गणना एखन विदुवानक छुटत भवन गोटेक !!

लेखक:- जय प्रकाश चौधरी"जनक"
साभार:- जय प्रकाश चौधरी"जनक"
प्रस्तुति:- राजीव मिश्र(अपन मिथला धाम)
सुचना:- कृपया कें अही कविता कोप्पी करी और एकरा इत्र-वित्र जगह पर पोस्ट नै करी.
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