Maithili Poem: PAAN: Kashi Kant Mishra "Madhup"




स्वर्ग हूँमें  दुर्लभ हमहिं पान !

                
श्रिंगार सकलसँ  समलंकृत, सौन्दर्य-सुरभिसँ वा सुरभित !
                
नायिका ता नयनाभिराम, जा रस करती नहि हमर पान !!

शोभा सभाक बेकार थीक, बरियाती सरियाती ठीक !
जा लेल जाय कहि, देल जाय नहि ताम्बुलें भरि पानदान !!

                
बलिदान करथु वर बुढ आनि बेटीक, बेचि बटु चलथु फानी !
                 
दू पात हमर, सब पातककें कै देत कात, के ऐहन आन?

की समय पावि नहि महग सस्त? विश्वस्त एक हमहिं प्रशस्त !
कहूँ जाउ पाइमे दू खिल्ली किनि खाऊ सतत नव वा पुरान !!

                 
कियो छिकथि सूंघी, क्यो धुआँ उड़ाबाथि फुकि-फुकि !
                  
तै तमाकुलक जड़दा किमाम धै हमर संग भोजन प्रधान !!

अधरौक उपासक, कफ काशक शासक, कुगन्धी कीटकनाशक !
पावनिक प्राण, श्रम दूर करक साधन, कवि गायक-गणक जान !!


लेखक:- कविचूरामणि पंडित काशी कान्त मिश्र "मधुप"
प्रस्तुति:- राजीव मिश्र(अपन मिथला धाम)
सुचना
:- कृपया कें अही कविता कोप्पी करी और एकरा इत्र-वित्र जगह पर पोस्ट नै करी.

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