कविकोकिल विद्यापति ठाकुर, मैथिल ब़ाह्मण, मूल विसैवार, सौराठ ग़ाम के निवासी छलाह ।पश्चात् विसफी ग़ाम में आवि वसलाह । हुनक धम॔ पत्नी सुधीरा, दुल्लहि पुत्री, हरिपति पुत्र छलथिन्ह । एकटा मूँह लगुआ नोकर रामा छलन्हि । एकटा बरद, किछु खेत छलैन्ह जाहि सँ कष्टेमे गुजर करैत छलाह ।
विद्यापति कविता कलाप के विशेष रसज्ञ तथा मिथिला महाराज शिव सिंह उफ॔ शिवै सिंह के प़धान राज कवि छलाह । अनेक ग़न्थक रचयिता यथा कीति॔लता, पुरूष परिक्षा, लिखनावली, शैवसव॔स्व, विभगासार, गयापतन, दुगा॔भक्तितरंगणी, दानवाक्यमाला, गंगावाक्यावली छलाह । हुनक रचल घनेर तिरहुत गीत छन्हि । मिथिलावासी एहन के हेता जिनका विद्यापतिक एक आध रचना याद नहि हेतनि । यथा ” माधव कि कहब सुन्दरि रूपे, कतेक जतन विधि आनि समारल देखइत नयन स्वरूपे ।” ” महेशवाणी ….हम नहि आजु रहब अहि आँगन जौँ बुढ होएत जमाय ” ।।
विद्यापति जीक पितामही श्रीमति लक्षमी ठकुराइन विदुषी छलथिन्ह जे राजा हरिसिंह देव के सभा जाय श्रीमान् हरिनाथ मिश्रजीक पत्नी के लाँक्षित होमय सँ बचोने छलथिन्ह।
विद्यापति कविता कलाप के विशेष रसज्ञ तथा मिथिला महाराज शिव सिंह उफ॔ शिवै सिंह के प़धान राज कवि छलाह । अनेक ग़न्थक रचयिता यथा कीति॔लता, पुरूष परिक्षा, लिखनावली, शैवसव॔स्व, विभगासार, गयापतन, दुगा॔भक्तितरंगणी, दानवाक्यमाला, गंगावाक्यावली छलाह । हुनक रचल घनेर तिरहुत गीत छन्हि । मिथिलावासी एहन के हेता जिनका विद्यापतिक एक आध रचना याद नहि हेतनि । यथा ” माधव कि कहब सुन्दरि रूपे, कतेक जतन विधि आनि समारल देखइत नयन स्वरूपे ।” ” महेशवाणी ….हम नहि आजु रहब अहि आँगन जौँ बुढ होएत जमाय ” ।।
विद्यापति जीक पितामही श्रीमति लक्षमी ठकुराइन विदुषी छलथिन्ह जे राजा हरिसिंह देव के सभा जाय श्रीमान् हरिनाथ मिश्रजीक पत्नी के लाँक्षित होमय सँ बचोने छलथिन्ह।
महाराज हरिसिंहदेव गायक छलाह, हुनकर सभा में बहुत नीक..नीक गायक छलैन जाहि में कलानिधि नामक गायक सेहो छळाह अथा॔त हुनका लोकनिक वण॔ण विद्यापति जी अपन रचना पुरूषपरिक्षा ग़न्थ में गीताविद कथा शिष॔क कहानी में विस्तृत वण॔न कएने छथि । अस्तु देवसिंहक वाद हुनकहि पूत्र शिवसिंह राजा भेलाह जिनकर राजधानी देकुली के नजदीक वगमतीक तट पर गजरथपुर नगरी छलन्हि । मुसलमानक आक़मण सँ गजरथपुर विनष्ट भय गेल महाराज शिवसिंह दिल्ली कारागारहिं में मृत्यु के प़ाप्त कएलन्हि, हुनक धम॔ पत्नी लखिमा ठकुराइन के विद्यापति ठाकुर शिवसिंहक मित्र जे सप्तरी में रहैत छलाह ओतहि लय गेलथिन्ह, बारह वष॔ धरि शिव सिंहक प़तिक्षा में रहलाह विद्यापतिक लेल इ सभ सँ कष्टमय समय छलन्हिं । ओहि अवधि में विद्यापति जी “लिखनावली” नामक पुस्तकक रचना कएलन्हि जाहि में पुरादित्यक उल्लेख अछि । बारह वष॔क “सन् १४४५ सँ १४५७ धरि” वाद लखिमा देवी सती भय गेलीह तथा शिवसिंहक भाई पद्मसिंह मिथिलाक राजा भेलाह, हुनक स्वगा॔रोहणक पश्चात्य पद्मसिंहक पत्नी विश्वास देवी राजा भेलीह, विद्यापति जीक रचना शैवसव॔श्वसार नामक ग़न्थ में विश्वास देवीक बहुत प़शंसा कएने छथि ।
शिवसिंह एवं पद्मसिंह दूनू निःसन्तानी छलाह तैं देवसिंहक भाइ हरिसिंह जे हरड़ी ग़ाम, अन्धराठाढी प़खण्डक अन्तग॔त अछि रहैत छलाह हुनकहि पुत्र हृदयनारायण उपनाम नरसिंह मिथिलाक राजा भेलाह, जिनको राजकवि विद्यापति छलाह । मिथिला महाराज नरसिंहक आदेस पर विद्यापतिजी “विभागसार” नामक पुस्तक बनोलनि ।
महाकवि जन्मना ज्ञाणी, राजा शिवसिंह मुख्यसचिव, राजकवि, गृहस्त छलाह । महाकविक कविताकलापक माधुय॔ पर मुग्धभय अनन्तकोटिब़ह्माण्डनायक भगवान आशुतोष “शंकर” स्वयं “उगना” रूप में महाकविक सेवक बनि गेल रहथि . महाकविय शेव्य आ ब़ह्माण्डनायक शंकर “उगना” रूप में सेवक । वाँकी कथा सव॔ विदित अछी……………………
महाकवि अन्त समय में महाप़याणक लेल जखन खरखरिया पर गंगा निकट जा रहल छलाह तँ वाटहिं में बुझि परलैन्ह जे हमर समय निकट आवि गेल कि महाकवि झट दय बाजि उठलाह औ कहरिया सभ आब गंगा कतेक दुर छथि ? उ सुनि कहरिया कहलकन्हि गुरूजी भरिसक अहिठाम सँ दू कोस हेतीह । ई सुनितहिं महाकवि कहलथिन्ह अरे हम जखन अतेक दूर आवि गेलहुं तँ कि हमर इष्टदेव भ़ह्माण्डनायक उगनाक गंगाजी एतेक दूर नहि एतीह । ई कहि खरखरिया सँ उतरि महाकवि अपन गंगाधर उगनाक नचारी गावय लगलाह । गेर कि छल डमरूक शव्द जकाँ शव्दायमान करैत भगवती भागिरथी धरती कें चिरैत महाकविक निकट पहुँचि गेलीह, आ महाकवि ओहिसुरनदी “गंगाजी” में सदेह समा गेलाह ।
ओ स्थान समप़ति में समस्तीपुर जिला में विद्यापति नगर “स्टेशन” सँ प़ख्यात अछि महाकविक समाधि पर विराजमान् आशुतोषभगवान गंगाधरक भब्य “विद्यापति नामक शिवमंदिर एखनहुँ महाकविक यशोगान कय रहल अछी ।
महाकवि जन्मना ज्ञाणी, राजा शिवसिंह मुख्यसचिव, राजकवि, गृहस्त छलाह । महाकविक कविताकलापक माधुय॔ पर मुग्धभय अनन्तकोटिब़ह्माण्डनायक भगवान आशुतोष “शंकर” स्वयं “उगना” रूप में महाकविक सेवक बनि गेल रहथि . महाकविय शेव्य आ ब़ह्माण्डनायक शंकर “उगना” रूप में सेवक । वाँकी कथा सव॔ विदित अछी……………………
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