Dr. Jay Prakash Choudhary "Janak" Maithli Comedy:हे भगवती लs जा एकरा

हे भगवती लs जा एकरा
केहनो बौक रहौ ने, तैयो बेटे लए अनहार!
कतबो लुरिगरी सुन्दरी बेटी, दुशमन बुझए घर-परिवार!!

                      
हम जनमौती बच्चा खेलबू कपड़ा खीचु बोझक बोझ!
                     
खाई काल बसिया तरकारी, टटैल रोटी हमरा भोग!!
                    
बौआ लेल उपरका छाल्ही, गरम पराठा घीक पोचार!!
                    
कतबो लुरिगरी सुन्दरी बेटी, दुशमन बुझए घर-परिवार!!

बीस बेर बौआ गीरैये, तैयो ओकरा कम्म खोराक!
छुचे पेट अही छोड़ीया कें, डरे पानि पी ली भरि छाक!!
हे भगवती लs जा एकरा, असिरवाद लिखल कपार!!
कतबो लुरिगरी सुन्दरी बेटी, दुशमन बुझए घर-परिवार!!

                    
तिन-तिन ठाम पढैये टूयूशन, तैयो पिंकू परुकाँ फेल!
                     
हम भूक भूकिया डिबिया लगमे, फस्ट डिविजन खेले खेल!!
                      
कॉलेज में पढबाक सेहन्ता, बाबूजी लग बंद बकर!!
                     
कतबो लुरिगरी सुन्दरी बेटी, दुशमन बुझए घर-परिवार!!

कहियो जौं मन्दिरों जाई, कि बुढो सुढ्क नजरि दोषाह!
नीको गप्प कोनो छौरा सँ, घर-घर उरले अफबाह!! 
अपने मियां छुटी खेलाबs, बीबी सब कें नाक ओहार!!
कतबो लुरिगरी सुन्दरी बेटी, दुशमन बुझए घर-परिवार!!

                        
हम्मर नाम अभगली खरहू, लs दs एक बियाहक खर्च!
                        
बड़का भैया लाख टका केर, बोतल तोरल कतो ' चर्च!!
                        
लेडिक मर्म बुझै लेडिजे, हे कालीजी तोरे भार!!
                          
कतबो लुरिगरी सुन्दरी बेटी, दुशमन बुझए घर-परिवार!!

जे बेटी एवरेस्ट शिखर पर, उड़नपरी देशक अभिमान!
से भनसा घर स्वर्ण लता सब, भुजैए खापड़ी में धान!!
मायक टहलनी, बsरक खबासिन, बेटा पुतहु केर खटी बेगार!!
कतबो लुरिगरी सुन्दरी बेटी, दुशमन बुझए घर-परिवार!!

                            
गर्भे में ली टेस्ट परीक्षा, भितरे-भीतर काम तमाम!
                            
तै डॉक्टर सभ कें सतमहला, रे बैमनमा सीताराम!!
                            
बेटा जखन दै गरदनियाँ, तं बेटीये घर बुढ्बाक जोगर!!
                            
कतबो लुरिगरी सुन्दरी बेटी, दुशमन बुझए घर-परिवार!!

आबि रहल छे हमर जमाना, सब दिन रहत ' एक समान!
मरद वरद केर कोनो काज नै, घर-घर महिला बनत देवान!!
माछी मारत सब मरदाबा, हमरा मुठ्ठी में रोजगार!
तखन देखब नारीक महता, रग्रब नाक अही दरबार!!
कतबो लुरिगरी सुन्दरी बेटी, दुशमन बुझए घर-परिवार
!! 
    
लेखक:- जय प्रकाश चौधरी"जनक"
साभार:- जय प्रकाश चौधरी"जनक"
प्रस्तुति:- राजीव मिश्र(अपन मिथला धाम)
सुचना:- कृपया कें अही कविता कोप्पी करी और एकरा इत्र-वित्र जगह पर पोस्ट नै करी.
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4 comments

  1. आबि रहल छे हमर जमाना, सब दिन रहत न' एक समान!
    मरद वरद केर कोनो काज नै, घर-घर महिला बनत देवान!!
    माछी मारत सब मरदाबा, हमरा मुठ्ठी में रोजगार!
    तखन देखब नारीक महता, रग्रब नाक अही दरबार!!
    कतबो लुरिगरी सुन्दरी बेटी, दुशमन बुझए घर-परिवार!!

    i asha dekhloun bhut sundar lagal muda iho nai chahait 6i ki kio ma6i maraith.
    saman adhikar baat krait 6i hm sb ..... samaj me rhl discrimination k ant krbaklel chahait 6ai nai ki kkro nicha dekhab lel chahait ..

    ekta aur baat ona hm facebook pd share keloun link ahak request babjoodo ekra copy kkr facebook me purna jankari ke sath share kene .......
    jahi besi s besi kio ke majhme jiat kahik

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  2. नगीना जी साईट सा जुरै क लेल बहुत बहुत धन्यवाद!! इ एगो हास्य व्यंग कविता छि,
    कृपया क कें एकरा दिल प नै ली
    जय मैथली जय मिथला

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